COVID-19 Testing- Free testing for COVID-19 says Supreme Court!!

SUPREME COURT OF INDIA

DIVISION BENCH

SHASHANK DEO SUDHI — Appellant

Vs.

UNION OF INDIA AND OTHERS — Respondent

( Before : Ashok Bhushan and S. Ravindra Bhat, JJ. )

Writ Petition No…….of 2020 (D. NO.10816/2020)

Decided on : 13-04-2020

COVID-19 Testing- Free testing for COVID-19 shall be available to persons eligible under Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Aarogya Yojana, and any other category of economically weaker sections of the society as notified by the Government for free testing for COVID-19 – In view of the discussion, the order dated 08.04.2020 ( Shashank Deo Sudhi vs. Union of India) is clarified and modified in the following manner:

(i) Free testing for COVID-19 shall be available to persons eligible under Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Aarogya Yojana as already implemented by the Government of India, and any other category of economically weaker sections of the society as notified by the Government for free testing for COVID-19, hereinafter.

(ii) The Government of India, Ministry of Health and Family Welfare may consider as to whether any other categories of the weaker sections of the society e.g. workers belonging to low income groups in the informal sectors, beneficiaries of Direct Benefit Transfer, etc. apart from those covered under Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Aarogya Yojana are also eligible for the benefit of free testing and issue appropriate guidelines in the above regard also within a period of one week.

(iii) The private Labs can continue to charge the payment for testing of COVID-19 from persons who are able to make payment of testing fee as fixed by ICMR.

(iv) The Government of India, Ministry of Health and Family Welfare may issue necessary guidelines for reimbursement of cost of free testing of COVID-19 undertaken by private Labs and necessary mechanism to defray expenses and reimbursement to the private Labs.

(v) Central Government to give appropriate publicity to the above, and its guidelines to ensure coverage to all those eligible.

Advocate

Amaresh Yadav

Supreme Court of India

9953084083

रासुका इतनी चर्चा में क्यों है? जानें!!

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(रासुका) का इतना हल्ला क्यों है?

कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच कोरोना वारियर्स पर हो रहे हमलों के कारण विभिन्न राज्यों की सरकारों ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया है। हाल हीं में उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में नर्सों के साथ अभ्रदता और मध्य प्रदेश में मेडिकल कर्मियों पर पथराव की घटनाएं होने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आदेश दिया कि पुलिस तथा मेडिकल टीम पर हमला करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई होगी।

क्‍या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA 1980)

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है।

इस कानून का उपयोग केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निवारक निरोध उपायों के रूप में किया जाता है

अगर सरकार को यह प्रतीत हो कि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है या कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने में अवरोध उत्पन्न कर रहा हो। तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है।

साथ ही, अगर प्रतीत हो कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति तथा रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकता है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करवा सकती है।

यह कानून 23 सितंबर 1980 को इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लागू किया गया था।

रासुका या एनएसए के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है।

राज्य सरकार को यह सूचित करने की आवश्यकता है कि रासुका के तहत एक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है। हिरासत में लिए गए व्यक्ति पर बिना आरोप तय किए उसे 10 दिनों तक रखा जा सकता है।
हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिर्फ हाईकोर्ट के सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपील कर सकता है। मुकदमे के दौरान रासुका लगे व्यक्ति को वकील की अनुमति नहीं मिलती।

प्रिवेंटिव डिटेंशन अर्थात क्या है निवारक निरोध

‘निवारक निरोध’, राज्य को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी व्यक्ति को कोई संभावित अपराध करने से रोकने के लिये हिरासत में ले सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 22(3) के तहत यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त ‘गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण’ का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।

किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत केवल चार आधारों पर गिरफ्तार किया जा सकता है:

1. राज्य की सुरक्षा।
2. सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखना।
3. आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति और रखरखाव तथा रक्षा।
4. विदेशी मामलों या भारत की सुरक्षा।

निवारक निरोध के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अनुच्छेद-19 तथा अनुच्छेद-21 के तहत प्रदान की गई व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ प्राप्त नहीं होंगी।

NSA की पृष्टभूमि

1.भारत में निवारक निरोध कानून की शुरुआत औपनिवेशिक युग के बंगाल विनियमन- III, 1818 से प्रारम्भ माना जाता है। इस कानून के माध्यम से सरकार, किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रियाओं से गुज़रे बिना सीधे ही गिरफ्तार कर सकती थी।

2. ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट, 1919 को लागू किया, जिसके तहत बिना किसी परीक्षण (Trial) के संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति दी गई।

3.स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1950 में निवारक निरोधक अधिनियम (Preventive Detention Act- PDA) बनाया गया, जो 31 दिसंबर, 1969 तक लागू रहा।

4.वर्ष 1971 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act- MISA) लाया गया जिसे वर्ष 1977 में जनता पार्टी सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया। बाद में कॉंग्रेस सरकार द्वारा पुन: NSA लाया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून कब प्रभावी हुआ

रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 23 सितंबर 1980 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार्यकाल में अस्‍तित्‍व में आया था।
ये कानून देश की सुरक्षा मजबूत करने के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित है।

यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।

सीसीपी, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।

सामान्य मामलों से कैसे अलग है NSA के प्रावधान ?

पुलिस को दूसरे मामलों के तहत हिरासत में लिए जाने वाले लोगों की गिरफ्तारी का कारण बताना होता है। साथ ही गिरफ्तार किए गये लोगों के पास जमानत दाखिल करने, वकील चुनने और सलाह लेने का अधिकार होता है।

इसके अलावा इन लोगों को हिरासत में लिए जाने के 24 घंटे के अंदर कोर्ट के सामने पेश करना अनिवार्य होता है।

NSA के तहत हिरासत में लिए जाने वाले लोगों को इनमें से एक भी अधिकार नहीं मिलता।

कब-कब हो सकती है गिरफ्तारी

1.अगर सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है।
2. यदि सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ी कर रहा है उसे हिरासत में लेने का आदेश दे सकती है।
3.इस कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।

सलाहकार समिति का गठन

1. इस अधिनियम के उद्देश्य से केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आवश्यकता के अनुसार एक या एक से अधिक सलाहकार समितियां बना सकती हैं।
2. इस समिति में तीन सदस्य होंगे, जिसमें प्रत्येक एक उच्च न्यायालय के सदस्य रहे हों या हो या होने के योग्य हों. समिति के सदस्य सरकार नियुक्त करती हैं। 3. संघ शासित प्रदेश में सलाहकार समिति के सदस्य किसी राज्य के न्यायधीश या उसकी क्षमता वाले व्यक्ति को ही नियुक्त किया जा सकेगा, नियुक्ति से पहले इस विषय में संबंधित राज्य से अनुमति लेना आवश्यक है।

सलाहकार समिति का महत्व

1. इस कानून के तहत गिरफ्तार किसी व्यक्ति को तीन सप्ताह के अंदर सलाहकार समिति के सामने उपस्थित करना होता है। साथ ही सरकार या गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को यह भी बताना पड़ता है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया गया। सलाहकार समिति उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर विचार करता है या वह नए तथ्य पेश करने के लिए कह सकता है। सुनवाई के बाद समिति को सात सप्ताह के भीतर सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है।
2. सलाहकार बोर्ड को अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखना होता है कि गिरफ्तारी के जो कारण बताए गए हैं वो पर्याप्त हैं या नहीं।
3.अगर सलाहकार समिति के सदस्यों के बीच मतभेद है तो बहुलता के आधार निर्णय माना जाता है।
4. सलाहकार बोर्ड से जुड़े किसी मामले में गिरफ्तार व्यक्ति की ओर से कोई वकील उसका पक्ष नहीं रख सकता है साथ ही सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट गोपनीय रखने का प्रावधान है।

सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट पर कार्रवाई

1. अगर सलाहकार बोर्ड व्यक्ति की गिरफ्तार के कारणों को सही मानता है तो सरकार उसकी गिरफ्तारी को उपयुक्त समय, जितना पर्याप्त वह समझती है, तक बढ़ा सकती है।
2. अगर समिति गिरफ्तारी के कारणों को पर्याप्त नहीं मानती है तो गिरफ्तारी का आदेश रद्द हो जाता है और व्यक्ति को रिहा करना पड़ता है।

सजा का प्रावधान

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA के तहत किसी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है।
राज्य सरकार को यह सूचित करने की आवश्यकता है कि NSA के तहत व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उनके खिलाफ आरोप तय किए बिना 10 दिनों के लिए रखा जा सकता है। हिरासत में लिया गया व्यक्ति उच्च न्यायालय के सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपील कर सकता है लेकिन उसे मुकदमे के दौरान वकील की अनुमति नहीं है।

क्या होती है पूरी प्रक्रिया

कानून के तहत उसे पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है।

एक बार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है। अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है।

जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा नहीं हो सकती।

अगर अधिकारी पांच से दस दिन में जवाब दाखिल करता है तो ये अवधि 12 की जगह 15 दिन की जा सकती है।

अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार मंजूर कर देती है तो इसे सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है।

इसमें इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया गया और राज्य सरकार का इसपर क्या विचार है और यह आदेश क्यों जरूरी है।

NSA के साथ विवाद क्यों ?

1.मूल अधिकारों से टकराव:

सामान्यत: जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे कुछ मूल अधिकारों की गारंटी दी जाती है। इनमें गिरफ्तारी के कारण को जानने का अधिकार शामिल है।
संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में कहा गया है कि एक गिरफ्तार व्यक्ति को परामर्श देने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

2.आपराधिक प्रक्रिया संहिता से टकराव:

2.आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) की धारा 50 के अनुसार गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार तथा जमानत के अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।

इसके अलावा Cr.PC की धारा 56 तथा 76 के अनुसार गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर एक व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाना चाहिये।
किंतु इनमें से कोई भी अधिकार NSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को उपलब्ध नहीं है।

3.आँकड़ों की अनुपलब्धता:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ NCRB),जो देश में अपराध संबंधी आँकड़े एकत्रित तथा उनका विश्लेषण करता है, NSA के तहत आने वाले मामलों को अपने आँकड़ों में शामिल नहीं करता है क्योंकि इन मामलों में कोई FIR दर्ज नहीं की जाती है। अत: NSA के तहत किये गए निवारक निरोधों की सटीक संख्या के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

अनुच्छेद 22 : कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण

अनुच्छेद 22 के खंड (1) और (2) में प्रदान की गई मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और रोकथाम के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुरक्षा यह है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसी गिरफ्तारी के आधार पर सूचित किए बिना हिरासत में नहीं लिया जाएगा। ऐसे किसी भी व्यक्ति को परामर्श करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा और व्यक्ति को अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा। हर व्यक्ति जिसे हिरासत में लिया गया है उसको 24 घंटे की गिरफ्तारी अवधि के अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।

किंतु उपर्युक्त सुरक्षा एक दुश्मन, विदेशी या गिरफ्तार व्यक्ति या निवारक निरोध के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है।

अनुच्छेद 22 में निवारक निरोध कानून

अनुच्छेद 22 निवारक निरोध के लिए कानून की संभावना को व्यक्त करता है। यदि ऐसा कोई कानून नहीं है, तो भी कार्यकारी अपनी जिम्मेदारी ले सकता है, किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकता है। निवारक निरोध से संबंधित किसी भी कानून को वैध होने के लिए, इस अनुच्छेद के खंड (4) से (7) की आवश्यकताओं को स्वीकृत करना चाहिए।

किसी भी कानून के तहत हिरासत में रहने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तारी से बचाव के लिए खंड (4) से (7) द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार, हिरासत की अधिकतम अवधि, हिरासत के कारण की पर्याप्तता पर विचार करने और रिपोर्ट करने के लिए एक सलाहकार बोर्ड का प्रावधान, हिरासत के आधार की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार और हिरासत के आदेश के खिलाफ प्रतिनिधित्व करने का सबसे पहला मौका देने का अधिकार से संबंधित हैं।

किसी तरह के अनुचित उपयोग के खतरे को जितना संभव हो सके कम से कम कम करने के लिए निवारक निरोध की शक्ति को विभिन्न प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि इस अनुच्छेद को मौलिक अधिकारों के अध्याय में एक अलग स्थान दिया गया है।

अनुच्छेद 22 में संशोधन

निवारक निरोध अधिनियम, 1950 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था लेकिन यह एक अस्थायी अधिनियम था जिसे मूल रूप से केवल एक वर्ष के लिए पारित किया गया था।

किंतु इस अधिनियम को 1969 अवधि समाप्त होने तक बढ़ा दिया गया था।

अराजकतावादी ताकतों के पुनरुत्थान ने 1971 में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) नामक एक नए अधिनियम को लागू करने के लिए संसद का नेतृत्व किया, जिसमें निवारक निरोध अधिनियम, 1950 के प्रावधान थे।

1974 में, संसद ने विदेशी मुद्रा के संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम के लिए अधिनियम (कोफेपोसा) पारित किया जिसका लक्ष्य सामाजिक गतिविधियों जैसे तस्करी, विदेशी मुद्रा में रैकेटिंग और सजातीय है। MISA को 1978 में रद्द कर दिया गया था लेकिन कोफोपासा अभी भी सक्रिय है।

जनता पार्टी सरकार ने 1978 में संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम को लागू करके अनुच्छेद 22 के खंड (4) और (7) में हुए परिवर्तनों को प्रभावित करके निवारक निरोध के लिए प्रक्रिया की कठोरता को कम करने की मांग की। हालांकि अधिसूचना जारी होने से पहले जनता सरकार सत्ता से बाहर हो गई और इंदिरा गांधी जनवरी, 1980 में पुनः प्रधानमंत्री पद संभाला। उन्होंने ऐसी अधिसूचनाएं जारी करने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप अनुच्छेद 22 में निवारक निरोध से संबंधित मूल खंड अभी भी प्रभावी है।

NSA से संबंधित सुझाव

1. किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना ‘नागरिक स्वतंत्रता’ को प्रभावित करने वाला एक गंभीर मामला होता है।अगर सामान्य कानूनों के तहत पर्याप्त उपाय उपलब्ध हों तो राज्य सरकारों को ‘निवारक निरोध’ का सहारा लेने से बचना चाहिये।

2.किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के तहत हिरासत में रखना प्राधिकारी की व्यक्तिगत संतुष्टि पर निर्भर करता है, लेकिन ऐसा करने से संविधान के अनुच्छेद 14,19, 21 और 22 में वर्णित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

3.निवारक निरोध एक सांविधिक शक्ति (statutory power) है, अतः इसका प्रयोग कानून की सीमाओं के भीतर रहकर ही किया जाना चाहिये।